प्रकाशकीय वक्तव्य

 

इस खंड में माताजी के शिक्षाविषयक लेखों, संदेशों, पत्रों और वार्तालापों का संग्रह हैं । 'श्रीअरविन्द अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा-केंद्र' के वार्षिकोत्सवों पर मंचित किये जाने के लिये लिखे गये तीन नाटकों का भी इसमें समावेश हैं ।

 

 पहला भाग : लेख

 

   ये लेख पहले-पहल १९४९ से १९५५ के बीच 'शारीरिक शिक्षण पत्रिका' (जो बाद में ' श्रीअरविन्द अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र' की पत्रिका बन गयी) में छपे थे । माताजी पहले फ्रेंच में लिखती थीं, बाद में उन्होंने कुछ का पूरा और कुछ का आंशिक अनुवाद अंग्रेजी में किया था ।

 

 दूसरा भाग : संदेश, पत्र और वार्तालाप

 

   १.श्रीअरविन्द अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा-केंद्र-के भाग में मुख्य रूप से माताजी का शिक्षा-केंद्र के विधार्थियों और अध्यापकों के साथ पत्र-व्यवहार और वार्तालाप हैं । कुछ अन्य संस्थाओं और व्यक्तियों को दिये गये संदेश भी इसमें हैं । अधिकतर वक्तव्य फ्रेंच में थे । इनमें से कुछ आश्रम की पत्रिकाओं और पुस्तकों में छप चुके हैं, और कुछ यहां पर पहली बार छप रहे हैं ।

 

  जिन वक्तव्यों की तारीख मिल जाती हैं उन्हें तारीखवार रखा गया है, बाकी जो जहां ठीक लगे बीठा दिये गये । एक ही व्यक्ति को एक के बाद एक लिखे गये पत्रों के बीच में बस खाली जगह छोड़ीं गयी है; और अलग-अलग लोगों को लिखे गये पत्रों के बीच. यह निशानी रखी गयी हैं ।

 

  २. श्रीअरविन्दाश्रम शारीरिक शिक्षण विभाग-इस विभाग का परिचय देते हुए नौ छोटे-छोटे लेख पहले 'शारीरिक शिक्षण पत्रिका' में १९४९ और १९५० में छपे थे । बीच के उप-विभागों में शारीरिक शिक्षण के वार्षिक समारोहों और प्रतियोगिताओं के समय दिये गये लिखित और ध्वन्याकित संदेश हैं, अगले में सामान्य संदेश. और व्यक्तिगत पत्र हैं और अंतिम विभाग में नारी-शरीर के बारे में एक लेख है जो पहले- पहल १९६० में पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुआ था ।

 

  ३. न्यू एज एसोसिएशन-ये इस सभा के सेमिनारों को दिये गये संदेश हैं ।

 

  ४. विधालय में माताजी के काम की झांकी- ये पत्र और टिप्पणियां हैं । ये हमारे विद्यालय की एक अध्यापिका के प्रश्रों के उत्तर हैं, इसका काल ९९६० से १९७२ हैं ।

 


  ५. कक्षा के मुखिया को उत्तर-यह शारीरिक शिक्षा-विभाग की एक कप्तान के साथ पत्र-व्यवहार हैं ।

 

  ६. कक्षा के मुखिया को उत्तर-इस विभाग में एक युवा कप्तान को लिखे गये पत्रों से शिक्षासंबंधी पत्रों का संकलन हैं ।

 

  ७. वार्तालाप-इस भाग में १९६७ के दो वार्तालाप तथा फरवरी १९७३ के छ: वार्तालाप हैं । ये शिक्षा के बारे में माताजी के अंतिम वक्तव्य हैं ।

 

 तीसरा भाग : नाटक

 

   आश्रम विधालय के वार्षिकोत्सव के सिलसिले में हर वर्ष पहली दिसम्बर को नाटक हुआ करता है जिसमें यहां के बिधार्थी और अध्यापक भाग लेते हैं । माताजी ने इस अवसर के लिये तीन नाटक लिखे थे । 'भविष्य की ओर' १९४९ में, 'महान रहस्य' १९५४ में और 'सत्य की ओर आरोहण' १९५७ में मंच पर खेले गये थे । 'महान् रहस्य' के बारे में माताजी का एक पत्र भी छापा जा का हैं ।

 

   यह माताजी के शताब्दी-ग्रंथ-संग्रह का बारहवां खंड है । जैसा कि हम हमेशा कहते आये हैं, माताजी के शब्दों का अनुवाद करना एक असंभव काम है । जो लोग मुल नहीं पढ़ सकते उनके लिये 'श्रीअरविन्द अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा-केंद्र' के हिन्दी विभाग ने यह अनुवाद तैयार किया है ।